________________
जय जयकार गज उठी।
श्रृष्टि की रचना करके प्रादिनाथ ब्रह्मा कहलाने लगे।
आज पृथ्वीपर नया जीवन नया उत्साह अपना रग विखेर रहा था । मानव ही नहीं पशु भी माज नाच रहे थे । न्योकि कुछ ही समयान्तर पर खेत लहलहाने लगे, फुल खिल उठे, मयूर नाच उठे, चिडिया चहचहा उठी और मानव सभ्य बन उठा । आज नारी
और नर ने अपना अपना व्यक्तित्व पहबाना पा । आज एक दूसरे से स्नेह करने लगा था । प्रम करने लगा था। मोह करने लगा था। अनविज्ञ मानव अव विज्ञ होने की सोपान पर चढने जा रहा था।
महाराजा नाभि प्रत्यन्त प्रसन्न थे। महारानी मरुदेवी धन्य हो रही थी और यशस्वती तथा सुनन्दा ?.. • वे तो गौरव से भरी जा रही थी । पुत्र भरत और बाहुबली अपने पिता से पूर्ण शिक्षा ले रहे थे । वामी और सुन्दरी को अपने सस्कारो को प्रकट करने का अवसर प्राप्त हो रहा था।
xxxx "प्रजापति महाराज सादिनाथ की जय ।"
जय जय कारो से अयोध्या का कोना-कोना गज उठा। सभी देशों के मनोनीत राजागरण भी खुशियां मना रहे थे । विशाल मण्डप मे विशाल मच पर राजा नाभि एवं अन्य माननीय राजा गरण वैठे दिखाई दे रहे है । सिंहासन खाली दिखलाई दे रहा है । तभी भगवान आदिनाथ सजे धजे से मण्डप में प्राए । जिन्हें देखफर पन जय नारा गज उठा।
छम छम छम की झन्कारे छम छम । उठी ! सारा मण्डप नृत्य की मोहक कला ने प्रभावित हो उठा । देवगण पुष्प की, रत्नो को वर्षा कर करको दुन्दुभी वजा रहे थे। तभी नाभि राज उठे और आदि नाथ को दोनो हाथो से थामे सिंहासन पर