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( ३० ) 'अच्छा कहो तो, क्या स्वप्न थे वे '
रानी ने रात्रि के अन्तिम प्रहर मे जो-जो स्वप्न देखे थे, सभी को अपने प्राणेश के समक्ष प्रकट किया । आदिनाथ ने वडे ध्यान से सुना और बहुत ही प्रसन्न होते हुये बोले
'खुब । बहुत खुब । रानी तुम धन्य हो गई ।'
'ग्ररे ? क्यो ? ऐसी क्या बात है P
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'रानी । तुम एक महान् सम्राट, महान् ज्ञानी, महान् कल्याण कारक, और महान् वैभवशाली पुत्र की मां बनने वाली हो ! और वह भी मात्र तो माह पश्चात् ही ।"
'क्या 1|| ...... ?' रानी का रोम-रोम नाच उठा । मन उडाने लेने लगा | फिर पूछने लगी- 'हाँ तो प्रभो यह तो बताइए आपको कैसे मालूम हुआ "
'तुम्हारे स्वप्नी से "
"ओह "
और दोनो विहस उठे । जब नास भस्देवी को मालूम हुआ तो फुली न समाई । वह पूर्ण रूप से अपनी पुत्र-वधु की देखभाल करने लगी ।
अरे रे रे सोडियो पर यो न चढी । ठहरो क्या चाहिये तुम्हे ? "दासियों से कह दिया करो |
अरे रे रे र्यो न चलो ठोकर लग सकती है । सम्भल कर
चलो ।
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अरेरेरे यह बोन क्यों । उठा रही हो? तुम समझती क्यो नही भोली रानी |
इस प्रकार अनेक देखभाल के नाथ महारानी मरुदेवी उन दिन की प्रतीक्षा कर रही थी, जब कि उनके आगन मे उसका
पोत्र सेनेगा |
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