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________________ ससार के प्रारिणयो को सुख देने वाले, सकट निवारण करने वाले आप प्रथम महापुरुष, महान् अात्मा, महान् योगी थे-तभी तो आप 'शकर' कहलाए। ___ समवशरण मे विराजे हुए आपका मुह चारो दिशामो से दिखाई देता था-तो ऐसा भान होता था कि मानो प्रापके चार मुख हो । और तभी तो पाप चतुर्मुखी बह्मा कहलाने लगे। __ सृष्टि की रचना सर्व प्रथम प्रापने ही तो की थी- इसी लिए तो आप सजन हार कहलाए। श्रादम को सतपथ दिखाकर हव्वा से आदम बनाया। प्रापही ने तो तहजीब, सिखाकर हेवान को इन्सान बनाया । तभी तो आप बाबा आदम कहलाए जाने लगे । __ आप परवर दिगार हुए, जमीन के मालिक हुए और अव्वल (प्रथम) अल्लाह (भगवान) हुए । सच तो यह है। भगवान यादिनाथ-नियो के नहीं अपितु मानव मात्र के हितपो सतपथप्रदाक और जीवन दाता थे। उनका उपदेश सर्वजीवो के लिये समान था। किसी एक जाति या मजहब के लिये नहीं। भाज कैलाश पर्वत का ककर-ककर, शकर हो रहा है। सर्प भगवान आदिनाथ के शरीर पर लिपटे हुए है-~-भयकर जानवर विद्वेष छोडकर इर्दगिर्द वैठे है और भगवान आदिनाथ अपने आप में मग्न है । तभी तभी भरत ने धाकर भगवान में चरण हुए। सुलोचना एव अन्य नारियां भी वहा आई हुई थी। हजारो नर-नारी वहा दर्शनो को एकमित्त थे। मात्र दर्शन करते ही भरत को अपने भापका भान हुआ और वैराग्य विभूषित हो गया। ब्राह्मी और सुन्दरी भी प्रारंका रूप मे यही थी । उन्ही के पास प्रनेको नारियों ने दीक्षा ली। रो दिशाम्रो से जय-जय कार होने लगा।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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