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( १७६ ), प्रात चहल पहल हुई। गगा के किनारे पर असख्य विहगो ने गाना प्रारम्भ कर दिया। प्रात की वेला मे गगा का शीतल नीर महक उठा 1
अगडाई और मस्ती के रचेमचे दोनो नव दम्पति सेजपर से एक साथ उठे। सुलोचना की ओर जब जयकुमार ने देखा तो " सुलोचना ने अपने चहरे को दोनो हाथो से ढक लिया और पुलकित हो उठी।
"पगली कही की"..... एक प्यार भरी हल्की सी चपत गोल गोल उभरे हुए गालो पर लगाते हुए जयकुमार सेज से नीचे उत्तरे। ___जयकुमार ने यहा से प्रस्थान करने का आदेश दिया। सभी आदेश की प्रतीक्षा मे थे । प्रत आदेश मिलते ही रवाना हुए। सब साथी गगा को पार कर गए ।
सुलोचना भी अपनी दासियो के साथ रय मे बैठी । जयकुमार आगे आगे हाथी पर सवार हो गगा पार करने लगे । जय कुमार का मन प्रसन्न हो रहा था हर और विजय पा रहा था। तभी ___ तभी हाथी बुरी तरह चिंघाड उठा । गगा की मजधार और गहरी भवर मे हाथी लडा खडा बिघाड रहा था ना आगे बढ पाता था और ना पीछे हट पाता था। __ जिन सपनो मे जयकुमार खो रहा था वे सब छूमन्तर हुए। वह यह देखकर अत्यन्त भयभीत हुना कि हाथी मझधार मे क्यो फॅम गया । वह विचाड क्यो रहा है । जिसने भयकर युद्ध में तलवार, भाले, वाण आदि की परवाह नहीं की, जो कभी भी नहीं घबराया ..." वही हाथो यहां क्यो घबरा रहा है ।
गगा का पानी बढे वेग के साथ चल रहा था । भंवर गहरी होती जा रही थी। तभी · ." ____ "तभी मुलोचना चिल्ला उठी रकिए ? रुकिए स्वामिन् ।"