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( १७१ ) "मोह । यह तो अत्यन्त ही प्रसन्नता से भरा सुखद सन्देश है ! नव दम्पति कुशल है ना?" ___हा प्रभो । आपके आर्शीवाद से दोनो प्रानन्द मे हैं । प्रभो, महाराज प्रकम्पन ने आपसे अनुनय विनय के साथ क्षमा की याचना भी की है ?" __ "अरे !! I...क्षमा किसलिए ?"
"पभो । जव सुकमारी जी ने स्वयंवर मण्डप मे भलीप्रकार चयन करके जयमाला जयकुमार जी के गले में डाल दी और जयकुमार जी का जय जय कारा गूज उठा तो ...."
"तो क्या हुना • • वोलो बोलो ?" ।
"अापके प्रिय सुपुत्र कुमार-अर्ककोति जी ने अमगल छेड दिया।
"अमगल ? कैसा अमगल?"
"उन्होंने महाराज अकम्पन जी को भी ललकारा और अशिष्ट वचन कहे, जयकुमार जी के साथ युद्ध हुआ-युद्ध मे अनेक राजगणो ने अर्ककीर्ति जी का ही साथ दिया-फिर भी अपनी रणकौशलता का उपयोग करके जयकुमार जी ने कुमार अर्ककीति जी को बाध लिया । प्रभो । जब उन्हे महाराज प्रकम्पन के समक्ष उपस्थित किया गया तो-महाराज प्रकम्पन जी ने उन्हे तत्काल मुक्त करा दिया और सीने से लगा लिया?"
"पर यह अमगल हुआ किसलिए?"
"प्राणदाता महाराजेश्वर । " जयकुमार जी को चयन नरना, माला पहिनाना यह आपके सुगुत्र को श्रेष्ठ न लगा और सुलोचना की वाछा करने लगे |"
"क्यो? ??" 'अपनी पत्नी बनाने से लिए ।पर प्रभो । सुलोचना तो