________________
( १६५ ) चारो ओर का वातावरण प्रसन्नता की लहरो मे नहाया हुआ था। तभी .
हाँ हाँ । तभी एक रणभेरी सी बजी और मगल मे दगल हो गया। सभी एक दूसरे की पोर व्याकुल से देख रहे थे । अनेक विद्वेषी राणाम्रो ने उस प्रस्थान कर रहे रथ को रोक लिया । सुलोचना का कोमल हृदय कांप उठा।
महाराज प्रकम्पन सकते मे या गए । 'यह क्या हुआ? किसने यह विद्रोह खडा किया है ?" आदि प्रश्न उपस्थित समूह से पूछने लगे। तभी ___तभी अर्ककीर्ति राजकुमार (चकवर्ती भरत का पुत्र) कोधित शेर की तरह दहाउता हुना पाया और गूजने लगा ।
"आपने हमारा अपमान किया है। यदि एक तुच्छ और सेवकीय-कीट को ही यह सम्मान देना था, यदि गधे के गले में मन्दार पुष्पो की माला पहिनानी ही थी, यदि कीचड से ही चेहरा रगना था, यदि नीच से ही नाता जोडना था • तो हमे क्यो बुलाया गया था ???
सबको ऊफनते देखकर राजा अकम्पन ने महान् धैर्य से काम लिया और सरल व नम्रवारणो मे बोले" ___ 'मुझे दुख है कि आप लोगो की आत्मा मे, विचारो मे इस प्रकार की व्याकुलता उत्पन्न हो गई है । जहा तक मेरा प्रश्न है .. तो मैंने तो ऐसा कोई भी अनुचित कार्य नहीं किया-जिससे आपका अपमान हुआ हो।" जयमाला डालने से पूर्व ही घोषणा कर दी गई थी कि 'सुलोचना जिसे नी 'वरण' कर लेगी वही उसका पति होगा। इसमे कोई भी विरोध नहीं करेंगे और आप सबने वह घोषणा सुनकर स्वीकृति भी दी थी। अब आप को यो ।