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स्वयम्बर मण्डप में वीच का स्थान खाली छोडकर चारो ओर गोलाकार अवस्था मे बैठने की व्यवस्था की गई है। मलमल के गलीचे, गलीचो पर सुगन्धि की महक, और महक से भीगा हुआ मसनद, पास ही एक सुन्दर स्वर्ण, रत्ल, हीरो से जडी छोटी सी नौको-जिस पर अल्पाहार का सामान, पीने के लिए सोने की झारी मे शीतल सुगन्धित पानी और मेवा, ताम्वुल ग्रादि रखे हुए थे । यह व्यवस्था सभी बैठने के आसनो पर थी और ऐसे प्रासन कोई एक हजार आठ के लगभग थे।
सामने ही एक सुन्दर मच था। जिसे कुशल चित्रकार ने चित्रित किया था। कुशल शिल्पकार ने रचना की थी और कुशल शृगार कारक ने उमको सजाया था । उस पर दो बासन बहुत ही सुन्दर लगाये गये थे। ___ स्वयंवर मण्डप के निकट ही मागन्तुक राजकुमारो के विश्राम करने की व्यवस्था थी । जिसमे ऐमी कोई सामग्नी बाकी नही रही यी जो किसे खटकने लगे अर्थात् एक से एक सामग्री वहा उपस्थित थी।
सेवक गण प्रत्येक आज्ञा के लिये तत्पर खडे किये गये थे।
राजकुमार पाने लग गये थे । और उन्हें ठहराने की व्यवल्या की जा रही थी।
उपर सुलोचना का तो हाल ही मत पूछो। वह तो आज लाज की मारी अपने आपमे सिमटी जा रही थी। अन्दर की उमग भरी गुदगुदी से सही हुई मुस्कराहट चेहरे पर से फूटी जा रही नी।ग अग ना मालूम यो मचल रहा था-बस में ही नहीं हो पा रहा था।
सहेलिया भी कम नहीं थी । वे अन्य अनुभाविक तथ्यो को वता बतासर सुलोचना की प्रानन्द भरी मीठी-मीठी वेदना को घोर जागृत कर रही थी।