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है-अब तो हमे किती विद्याधर के यहाँ सम्बन्ध करके शान वढानी चाहिए।' ___नही । नही । । नहीं ।।!' जोर के साथ सिद्धार्थ मत्री ने दलील दी। 'विद्याधरो के साथ सम्बन्ध करने से हमे चक्रवर्ती से दुश्मनी मोल लेनी पड जायेगी । जव चकवर्नी हमसे पूछेगा किक्या भूमि गोचरियो मे कोई उत्तम बर ही नहीं था जो विद्याधरो के साथ सम्बन्ध किया है। तब वताइये हमारे पास क्या उत्तर होगा?
यह तर्क सतकर तव त्रुप हो गए। तभी समति नामक मत्री ने ऋपना एक सभाव रखा
'मेरा तो नयोग्य सुभाव यह है कि स्वयम्बर रचा जाय । उनमे उपस्थित होने के लिए श्रेष्ठ कल, परिवार, योग्यता वाले गजकुमारो को मामत्रित किया जाय । उस स्वयम्बर मण्डप ने जिसे भी गजकुम्गरी सुलोचना पसन्द करले उसी के साथ सम्बन्ध स्थापित कर दिया जाय । इत्तसे किसी को भी विरोध नहीं होगा । और उत्तम परम्परा का जन्म भी हो जायेगा।'
इस सुझाव को सुनकर मत्र ही प्रसन्न हो गए। महाराज अकम्पन भी बहुत प्रसन्न हुए। और यह सुभाष राजा व रानी .दोनो ने सा स्वीकार किण ।
पेहरी पर प्रसन्नता को सिटे हुए सभी भनियों ने विदा लेनी चाही किन्तु महाराज अकन्सन ने उन्हें रोक कर कहा
युगम्य शीघ्रम् । अर्थात् शुभ कार्य को शीघ्र कर लेना ही प्रेगर है। अत नाज हो म प्रायोजन को नियात्मक रूप में पति पन्ना प्रारम्भ देना चाहिये । त्वयम्बर मडए विशाल हो, मगर हो, भव्य हो, जो मस्तित हो यान्तुिनों के विनिवास, प्रया, विमान भजनादि की उत्तम बपन्या
मिमी यो मारो को मामप्रित परने में नि नगल