________________
"महाराज I क्षमा करे । हम तो दूत है और दूत अपने स्वामी के वचनो को निडर होकर कहता ही है । जीवन पराधीन होने से अपनी ओर से योग्य अयोग्य समझने में असमर्थ रहता है।" ___"नहीं 1 नहीं । इसमे कोई भय की बात नहीं । तुम निर्भय
होकर स्पष्ट कहो।" ___"महाराज भरत ने चारो दिशाओ मे अपनी विजय पताका को फहरा दिया है और सभी राजा-महाराजाओ ने उन्हे भेट देदेकर प्रणाम किया है । सारा गगन मण्डल उनकी जय से गूंजाय मान हो उठा है। ___ 'हाँ । हां । कहते जाओ। रुको नही ।' 'महाराज । आज हमारे महाराज भरत राजानो के सिरताज है । उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक की सभी पृथ्वी पर उनका अधिकार हो गया है । वे महान् नीतिज्ञ, विजेता, और बलशाली हैं।' ___ 'अव तुम जो कहना चाहते हो कहो। यह सब तो मैंने सुन रखा है।
'महाराज।"भरत महाराज का एक सन्देश आपके नाम, आपकी सेवा में प्रस्तुत करने को मुझे प्राज्ञा प्रदान करे।' __ 'तुम्हे आज्ञा है।'
'महाराज भरत का आदेश है कि आप अपने दिग्विजयो भ्राता के समक्ष जाकर उन्हें प्रणाम करें? और '
'क्या केवल प्रणाम करने का ही सन्देशा है "
'हा महाराज | क्योकि भूमण्डल के सभी राजायो ने उनको सादर प्रणाम किया है।
_ 'तो अव समझ में आया। भरत को अभिमान हो गया है। वह चाहता है कि मैं उसके प्राचीन होकर रहूँ। क्या वह यह नहीं जानता कि भावान आदिनाथ ने हम दोनों को राज्य दिया है।