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हो रहे हैं कि दूसरे हस्ताक्षर करने को स्थान ही नही है । भरत का मान घट गया। तब सिर नीचा किये किसी एक का हस्ताक्षर मिटाकर अपने हस्ताक्षर किये ।
ध्रुव सम्पूर्ण विजय प्राप्त करके भरत वापिस अयोध्या को लौट रहे थे। साथ में अनेक निधियां थी। जिवर से भी प्रवेश करते .."जय भरत । जय भरत ' का नारा गूज उठता । भरत की पूजा की जाने लगी । भेट दी जाने लगी ।
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