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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
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ॐ ह्रीं सम्यग्रत्तत्रय! अत्र मम सन्निहितं भव भव । वषट् . ..
सोरठा।। क्षीरोदधि उनहार, उज्जल जल अति सोहना। . जनमरोगनिरचार, सम्यकरत्नत्रय भजों ॥३॥
ॐ ह्रीं सम्यग्रतत्रयाय जन्मरोगविनाशनाय जलं . निर्वपामि ॥१॥
चंदन केसर गारि, परिमल महा सुरंगमय । जन्मरोग ॥२॥ . ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामि ॥
. . . ' 'तंदुल अमल चितार, वासमती सुखंदासके । जन्मरो॥३॥
___ॐ हीं सम्यग्रत्नत्रयाय अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामि० ॥३॥ .. महक फूल अपार, अलि गुंजें ज्यों थुति करें। जन्मरो० ॥el
. ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय कोमवाणविध्वंसनायः पुष । निर्वपामि ॥४॥ लाडू बहु विस्तार, चीकन मिष्ट सुगन्धता । जन्मरो० ॥५॥ ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्व० दीपरतनमय सार, जोत प्रकाशै जगत में । जन्मरो० ॥६॥
ॐ हीं सम्यग्रत्नत्रयाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं. निर्व .धूप सुवास विथार, चन्दन अर्घ कपूरकी । जन्मरो०॥७॥
ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामि ॥ ७ ॥ फलशोभा अधिकार, लोंग छुआरे जायफल । जन्म०॥८॥ . ॐ ह्रीं सम्यग्रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामि० ॥८॥ आठदरव निरधार, उत्तमलों उत्तम. लिये । जन्मरो० ॥६॥ ॐ ह्रीं सम्यग्नत्नत्रयाय अनयंपदप्राप्तये अयं निर्वपामि ॥६॥
सम्यकंदरसनज्ञान, व्रत शिवमग तीनों मयी।