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जैन -ग्रन्थ-संग्रह 1.
रावणके सुत आदि कुमार । मुक्त गये रेवातट सार । कोड़ि पंच अरु लाख पचास । ते बंदौ धरि परम हुलास ॥ ११ ॥ रेवानदी सिद्धवरकूट । पश्चिमदिशा देह जह छूट ॥ है चक्री देश कामकुमार । ऊडकोड़ि बंदों भवपार ॥ १२ ॥ वडवाणी बडनयर सुचंग । दक्षिण दिश गिरिचूल उतंग ॥ इंद्रजीत अरु कुंभकर्ण । ते बंदों भवसागरतर्ण ॥ १३ ॥ सुवरणभद्र आदि मुनि चार । पावागिरिवर शिखरमकार | चेलना नदी तीरके पास । मुक्ति गये बंदों नित तास ॥ १४ ॥ फलछोड़ी घड़माम अनूप | पश्चिमदिशा द्रोणगिरिरूप || गुरुदत्तादि मुनी सुर जहाँ । मुक्ति गये बंदों नित तहां ॥ २५ ॥ वाल महाबाळ सुनि दोय । नागकुमार मिले त्रय होय ॥ श्रीमष्टापद मुकिमकार । ते बंद नित सुरतसँभार ॥ १६ ॥ अचलापुर की दिश ईशान । तहां मेढ़गिरि नाम प्रधान || साढ़ेतीन कोड़ि मुनिराय ! तिनके चरन नमू चित लाय ॥ १७ ॥ वंशस्थल वनके डिग होय । पश्चिमदिशा कुथगिरि सेाय ॥ कुलभूषण देशभूषण नाम । तिनके चरणनि करुं प्रणाम ॥ १८ ॥ जसरथराज! के सुत कहे । देशकलिंग पांचसौ लहे ॥ कोटि शिला मुनि कोटिप्रमान | वंदन करू जोर जुगपान ॥ १९ ॥ समवसरण श्रीपार्श्व जिनंद | रेसंदीगिरि नयनानंद ॥ वरदत्तादि पंच ऋषिराज । ते बंदों नित धरमजिहाज | २० | तीन लोकके तीरथ जहाँ । नितप्रति चंदन कीजे तहाँ ॥ मन वच कायसहित सिरनाय | वंदन करहि भवकि गुणगाय ॥ २१ ॥ संवत सतरहसौ इकताल | अबिनसुदि दशमी सुविशाल "भैया" वंदन करहिं त्रिकाल | जयनिर्वाणकांड गुणमाल ॥ २२ ॥ इति निर्वाहकांट भाषा ।
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