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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
चर्य, ८ आरम्भ-त्याग, परिग्रह-त्याग, १० अनुमति-त्याग, ११ उद्दिष्ट-त्याग।
४ दान-आहारदान, औषधदान, शास्त्रदान और अभय-दान । यह ४ दान श्रावक को करने योग्य हैं।
३ रनत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ।
यह तीन रत्न श्रावक के धारने योग्य हैं । इनका खुलासा अर्थ जैन-बाल-गुटले के दूसरे भाग में लम्यक के वर्णन में लिखा है। इनका नाम रत इस कारण से है कि जैसे सुवर्णादिक सर्वधन में रत उत्तम अर्थात् वेश कीमत होता है। इसी प्रकार कुल नियम, व्रत, तप में यह तीन सर्व में उत्तम हैं । जैसे कि विनाअंक विन्दियाँ किसी काम को नहीं इसी प्रकार बगैर इन तीनों के सारे व्रत नियम कुछ भी फलदायक नहीं हैं। सर्व नियम, व्रत मानिन्द विन्दी (शून्य) के हैं। यह तीनों मानिन्द शुरू के अङ्क के हैं। इसलिये इन तीनों को रत्न मोना है।
दातार के २१ गुण- नवधाभक्ति, ७ गुण और ५ आभूषण ।
यह २१ गुण दातार के हैं । अर्थात् पात्र को दान देनेवाले दातामें यह २१ गुण होने चाहिए। ' दातार की नवधाभक्ति-पात्र को देख तुलाना, उच्चासन पर बैठाना, चरण धोना, चरणोदक मस्तक पर चढ़ाना, पूजा करना, मन शुद्ध रखना, वचन विनय-रूप वोलना, शरीर शुद्ध रखना और शुद्ध आहार देना ।