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बड़ा जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
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डरें क्म अस्त्रशस्त्रों से, छुवे क्या अस्त्रशस्त्रों को । हमारा राष्ट्रही जव है, स्वयंसेवक अहिंसा का ॥३॥ 'बिना जीते महारणके, न जीते-जी टलेंगे हम । तजेंगे त्यों न तिलभर को, कभी रस्ता अहिंसा का ॥४॥ भले पालेसियां चल चल, हमें कोई भुलावे दें। भुलावों में न आवेंगे, दिखा विक्रम अहिंसा का ॥५॥ न हम नापाक खूनों से, रगेंगे पाक हाथों को। हमारा खून होतो हो, विजय होगा अहिंसा का ॥६॥ कभी धीरज न छोड़ेंगे, जहां में शांति भर देंगे। सिखावेंगे सबक सब को, अहिंसा का अहिंसा का ॥७॥ हमारे दुश्मने जानी भी, होंगे दोस्त कल आके। कहेंगे सर झुकाके यों; बतादो गुर अहिंसाका ॥८॥ तमन्ना है, न दुनियां में, निशा भी हो गुलामी का। सभी आजाद हों कोमें, बजे डंका अहिंसा का ॥६॥
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