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बड़ा जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
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दया का असर ही नहीं। कैसे प्राणी के प्राणों का घात करे तेरे दिल में दया का असर ही नहीं ॥ जो तू हिरनों का वन में शिकार करे क्या निगोद नरक का खतर ही नहीं ॥ टेक जैन बानी सुनो, जरा गोर करो, जान औरों की अपनी सी ध्यान धरो, ज़रा रहम करो, अपने दिल में डरो, प्यारे जुल्म का अच्छा समर ही नहीं ॥१॥ भोले वन के पखेरू हैं डरते फिरें, मारे डरके तुम्हारे से दूर रहें । वो तुम्हारा न कोई विगाड़ करें, उनका वन के सिवा कोई घर ही नहीं ॥२॥ तृण घास चर अपना पेट भरें, घंन देश तुम्हारा न कोई हरें । प्यारे बच्चों से अपने वा प्रीती करें, उनके दिल में तो कोई भी शर ही नहीं॥३॥ कामी लोगों ने इसको रवा है किया, झूठा अपनी तरफ से है मसला घड़ा। वरना पुरान कुरान में जीवों के मारन का, आता कहीं भी ज़िकर हो' नहीं ॥४॥ दयामई है धरम सत जाना सही, जिन राज ने है यह बात कही। सुना न्यामत विना जिन-धर्म कभी प्यारे होगा मुकत में घर ही नहीं ॥५॥
भूठा है संसार। मूठा है संसार आँख खोल कर देखो। टेक॥ जिसे कहता मेरा २ नहीं तू मेरा मैं तेरा मतलबी है संसार ॥१॥ जीतेजी के सव साथी; क्या घोड़ा ऊंट और हाथी, बताये क्या परिवार ॥२॥ अव काल अचानक आवे, तब कंठ पकड़ ले जावे, चले न कुछ तकरार ॥ ३ ॥ यहाँ बड़े२ योधा माये, सब ही को काल ने खाये, समझ तू मूर्ख गंवार ॥ ४ ॥ यह सुपने कैसी माया, क्यों देख मार्ग में आया, बिनस जाय लगे न वार क्यों मोह नीद में सेवि, और जन्म वृथा क्यों को मिले न बारबार । ६॥ जो प्रभुजी का गुण गावे, से जन्मोसफल को महायुह-जोहा हे पुकार ॥॥
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