________________
द्रव्यसंग्रह-कवित्तवन्ध ।
- ma
-
___ अजीबदरव पंच ताके नांच भिन्न सुना, पुद्गल ओ धर्मद्रव्यको सुभाव जानिये । अधर्म द्रव्य आकाश द्रव्य काल दर्व एई, पांचों द्रव्य जग में अचेतन पखानिये ।। तामें पुग्गल है मूरतीक रूप रस गन्ध, पर्शमई गुणपरजाय लिये जानिये। और पंच जीव जुन कहे हैं अमूरतीक, निज निज भाव धरै भेदी है पिछानिये ॥ १५ ॥
' शबद वन्ध सूक्षम थूल ओ आकार रूप, हैवो मिलियो ओ विछुरियो धूप छाय है । अंधारो उजारो ओ उद्योत चन्दकांतिसम, आतप सु भानु जिम नाना भेद छाय है ।। पुद्गल अनन्त ताकी परजाय अनन्त, लेखो जो लगाइये तोऽनंता. नन्त थाय है। एकही समॆमें आय सव प्रतिभास रही, देखी शानवंत ऐसी पुद्गल प्रजाय है।॥ १६ ॥
जब जीव पुद्गल चलै उठि लोकमध्य, तवै धर्मास्तिकाय सहाय आय होत है। जैसें मच्छ पानी माहिं आपुहीतें गीन करे, नीरकी सहाय सेती अलसता खोत है। पुनि यों नहीं जो पानी मीन को चलावे पंथ, आपुहीतै चलै तो सहाय कोऊ नेोत है । तैसें जीव पुद्गलको और न चलाय सके, सहजे ही चले तो सहायका उदोत है ॥१७॥
जीव अरु पुद्गलको थितिसहकारी होय,ऐसा है अधर्मद्रव्य लोकताई हद है । जैसे कोऊ पथिक सुपंथमध्य गौन करे, छाया के समीप आय बैठे नेऊ तद है । मैं यों नहीं जु पंथी को राखतु बैठाय छाया, आपुने सहज बैंठे बाको आश्रे. पद है। तैसें जीव पुद्गलं को अधर्मास्तिकाय सदा, होत है सहाय 'भैया' थितिसमें जद है ॥ १८ ॥ ... जीव आदि पंच पदार्थनिको सदाही यह देत अवकाश तात आकाश नाम पायो है । ताके भेद दोय कहे एक है अलो