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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
पढ़े सुने जो प्रीति से, सो नर शिवपुर जाय ॥१७॥ . ...... . .: इत्याशीर्जादः। ' . : . :. ... . . इतिश्री सोनागिरि पूजा सम्पूर्ण । .....
.:. रविव्रत प्रजा. . . . .:: ....: .... अडिल्ल । . : ... .. - यह भवजन हितकार, सुरविवृत जिंन कही | करडे भन्यजन लोग, सुमन देकें सही ।। पूजों पाच जिनेन्द्र त्रियोग लगाय। मिट सकल सन्ताय मिले निध आय के । मति लांगर इक सेठ गन्यन कही। उनहीने यह पूजा कर आनन्द लही । ताते रविवृत सार, सो भविजन कीजिये। सुख संपति सन्तान, अतुल निध लीजिये।दोहा। प्रणमा पार्श्व जिनेश को, हाथ जोड़ सिर नाय । परभव सुख के कारने, पूजा करू बनाय ।। एलवार वृतं के दिना, एक ही पूजन ठान । ता फल सम्पति लर्चे; निश्चय लीजे मान॥
": ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अत्रअवतार अवतर तिष्ठ २३ः अत्रं मम सन्निहितो। . .. .. : अष्टकं : ..
- उज्जल जल भरके अति लायो रतन कटोरन माहीं। धार देत अति हर्ष बड़ावत जन्म जरा मिट जाहीं ॥ पारसनाथ जिनेश्वर पूजों रविवृत के दिन माई । सुख सम्पति वहु होय तुरतही, भानन्द मंगलदाई ।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।। मलया.