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________________ पुनर्जन्म ६३ पुत्र कायर और कायर माती' को "पुत्र बहादुर, मूर्ख पिता का पुत्र ज्ञानी और ज्ञानी पिता का पुत्र मूर्ख देखने में आता हैं । बालक का यह स्वभाव आया कहाँ से ? इसका एक ही उत्तर हो सकता है— "आत्मा ने जब यह देह धारण किया, उस समय वह पूर्व भव के सस्कारों की पूँजी अपने साथ लेता आया था और वही पूँजी इस तरह व्यक्त हो रही है ।" यहाँ यह भी बता दिया जाये कि, जब आत्मा एक देह छोडकर दूसरी देह धारण करने के लिए गति करता है; तब उसके साथ सस्कारो की पूँजी के अलावा 'तेजस' और 'कार्मण्य' नाम के दो शरीर भी होते हैं। ये शरीर चूँकि अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, इसलिए कोई उन्हे रोक नहीं सकता । और, आत्मा के साथ वे चाहे जहाँ जा सकते हैं । पाँच प्रकार के शरीर यहाँ आप पूछेंगे कि शरीर कितने प्रकार का होता है ? इसलिए इसका भी स्पष्टीकरण कर दिया जाये । शास्त्रकार भगवत ने श्री पन्नवणा सूत्र में कहा है कि—–— “पच सरीरा पणत्ता, त जहा ओरालिये, वेउव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए । ज्ञानी भगवतो ने पाँच प्रकार के शरीर कहे हैं । वे इस प्रकार -१ औदारिक, २ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तैजस और ५ कार्मण्य | ----- जो शरीर उदार यानी उत्कृष्ट पुद्गलो का बना होता है, वह औदारिक कहलाता है अथवा अन्य गरीरों की अपेक्षा जो उच्च स्वरूपवाला हो वह औदारिक कहलाता है अथवा जिसका छेदन, भेदन, ग्रहण, दहन, आदि हो सके वह औदारिक कहलाता है । शास्त्र में औदारिक के लिए 'ओरोलिय' शब्द है । 'ओरालिय' शब्द 'उरल', 'उराल', या 'ओराल' से बना है । 'उरल' का अर्थ है 'विरल' | अर्थात् यह शरीर अन्य शरीरों की अपेक्षा स्वल्प प्रदेशवाला है, विरल प्रदेशवाला है । 'उराल' का अर्थ है 'उदार' यानी यह शरीर सब शरीरो से "
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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