________________
७१६
आत्मतत्व- विचार
होता है नउ सातो कर्मों की स्थिति तथा रस विभिन्न रूप में पड़ते हैं। तो, एक ही समय के एक ही उपयोग से विभिन्न कर्मों का बन्ध कैसे होता है ? और, विभिन्न स्थितियो और विभिन्न रसों का निर्माण कैसे होता है ?
( ६ ) धर्म भवातर मे तो अच्छा फल देता ही है, वर्तमान काल में भी धर्मकार्य करते समय बहुत से लाभ होते है । उदाहरण के लिए उतने समय तक पापक्रिया से बचे रहते हैं, पुराने कर्मों की निर्जरा होती है और नये पुण्यानुबन्धी पुण्य का बन्ध होता है तथा बँधते हुए पापकर्मों का बन्ध ढाला पडता है। हमारी धर्म करनी देखकर दूसरो को धर्मकरनी करने का दिल हो और कुटुम्ब में धर्म के संस्कार पड़ते हैं, आदि, आदि वह अवसर पर कहा जायेगा ।
'
जिसने धर्म की शुद्ध मन से आराधना की उसने अनन्त सुख पाया ! आप भी धर्म की आराधना द्वारा अनन्त सुख पायें |
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्व कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥