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________________ ૪ आत्मतत्व-विचार अब वह हजाम एक गली ज्यू- ही घुसा कि, हत्यारे उस पर टूट पड़े और उसके टुकड़े करके भाग गये । वहॉ पुलिस आयी, पंचनामा हुआ और लोगो में अफवाह फैल गयी कि " मत्री मारा गया ! मंत्री मारा गया ||" इस तरफ राजा विचार कर रहा है कि, "अभी तक अगरक्षक वापस क्यों नहीं आया ? क्या मंत्री ने कोई टाट नहीं दी ? वह वेतन खाये मेरा और सेवा करे धर्म की, यह अब नहीं चलने दूँगा । मै खुद ही उसके पास जाकर उसकी खबर लेता हूँ ।" राजा घोडे पर सवार होकर, नंगी तलवार लिये, मंत्री के स्थान की तरफ चला । रास्ते में गोर सुना कि 'मंत्री मारा गया ।' राजा घोड़े से नीचे उतरा और गली में जाकर देखा कि अगरक्षक हजाम के टुकडे हुए पडे हैं और मंत्री की मुद्रा उसकी उँगली मे दमक रही है । 'ऐसा कैसे हुआ होगा ?', यह सोचते हुए राजा को लगा कि मंत्रीसुद्रा छिन जाने के कारण मंत्री ने यह काड रचाया होगा, लेकिन यह अनुमान गल्त था । गलत अनुमान से कैसा बव डर उठता है, यह भी आप को निम्न कथा से मालुम होगा । कथान्तर्गत राजपूतानी का दृष्टान्त एक गाँव के बाहर एक बाबाजी आया। वह एक पेड के नीचे धूनी रमाकर बैठ गया । शाम के वक्त गॉव की तीन स्त्रियों उस पेड के पास वाले कुऍ से पानी मरने आयीं। उनमें एक ब्राह्मणी थी, दूसरी राजपूतनी और तीसरी बनियान थी। उस वक्त बाबाजी जप जप रहा था । और, वह भी जोर से - 'अगली भी अच्छी, पिछली मी अच्छी, बिचली को जूते की मार ।' यह सुनकर ब्राह्मणी और बनियान मुँह ढक कर हँसने लगीं। और, रजपूतनी का तो ऐसा भिर फिरा कि बेड को वहीं पटक कर अपने घर लौट पड़ी |
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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