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________________ श्रात्मतत्व-विचार सापेक्ष रूप से होनेवाली हिंसा की जयणा होती है ('यतना' अर्थात् 'जहाँ तक हो सके रक्षण करना' ।) साधुओं की अहिंसा के सामने गृहस्थ की यह अत्यत्प है। फिर भी इसका पालन बड़ा हितकर है। इससे गृहस्थ के हृदय में सर्व प्राणियों के प्रति दया का झरना अखड बहता रहता है और अन्त में वह विश्व के सर्व प्राणियों का सच्चा मित्र बन जाता है। धर्म में अहिंसा धर्म बड़ा है, इसलिए पहला व्रत हिंसा त्याग का लिया जाता है। अन्य सब व्रत इस अहिंसा-वृक्ष की शाखा-प्रशाखाएँ है । अहिंसा जीव के रक्षण और पोपण के लिए है। दूसरा स्थूल-मृपावाद-विरमण-व्रत मृपावाद अर्थात् झुठ बोलना, उससे रोकनेवाला स्थूल व्रत है-स्थूलमृपावाद विरमण व्रत ! उसमें नीचेकी प्रतिज्ञा ली जाती है (१) कन्या या वर के सम्बन्ध में झूठ नहीं बोलना । (२) गाय, भैस आदि जानवरों के बारे में झूठ नहीं बोलना। (३) जमीन, खेत आदि के विषय में झूठ नहीं बोलना । (४) किसी की अमानत में खयानत नहीं करना । (५) कोर्ट-कचहरी या पच के सामने झूठी गवाही नहीं देना। तीसरा स्थूल-अदत्तादान-विरमण-व्रत अदत्तादान माने चोरी ! उसका त्याग करने का स्थूल-व्रत है- स्थूलअदत्तादान-विरमण-व्रत । यह व्रत निम्न प्रकार लिया जाता है (१) किसी के घर-दुकान में बाधा नहीं डालना। (२) गाँठ खोलकर या पेटी-पिटारे को खोलकर किसी की चीज नहीं निकालना। (३ ) डाका नहीं डालना । (४) ताला खोलकर किसी की चीज नहीं निकालना।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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