SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्त्व ६६१ आप कहेंगे कि, इन दिनो तो कोई महान् प्रभावक आचार्य दिखलायी देते नहीं । वे तो कालान्तर में होते है । कभी कभी तो एक साथ अनेक प्रभावक होते है । जिस काल मे ऐसे प्रभावक दिखलायी न दें, तब निर्मल सयम की साधना करनेवालों तथा विधिपूर्वक तीर्थयात्रा करनेवालों तथा करानेवालो एव धूमधाम से पूजा आदि महोत्सव करानेवालो आदि को प्रभावक समझना चाहिए । श्री यशोविजयजी महाराज ने समकित की सडसठ बोल की उझाय में यह व्यक्त किया है । पाँच भूषण 1 जिससे वस्तु शोभे तथा दीप्त हो, उसे भूषण कहते है । सम्यक्त्व को सुशोभित करनेवाली पाँच वस्तुएँ है । उन्हें सम्यक्त्व के पाँच भूषण कहा जाता है | पहला भूषण है स्थैर्य, यानी धर्मपालन मे स्थिरता, दृढ़ता 1 लोभ-लालच से डिंग जानेवालो का और कठिनाई में धर्म को एक ओर रख देनेवालों का सम्यक्त्व कैसे शोभा दे सकता है ? तीसरे व्याख्यान मे हमने आपको एक मंत्री का दृष्टान्त सुनाया था । चतुर्दशी के दिन उसने औषध किया था, राजा के बुलाने पर भी वह नहीं गया और कहला दिया"आन पौषध के कारण नहीं आ सकता !" इस बात पर राजा क्रुद्ध हो जाता है। और, मत्री की मुद्रा वापस मँगा लेता है। फिर भी मंत्री नहीं डिगा । बोला - " मुद्रा गयी तो उपाधि गयी । वह धर्मध्यान मे बाधा थी । अब निर्बाध धर्म - ध्यान कर सकेंगे । जब आत्मा के परिणाम ऐसे दृढ हों तब समझना कि, स्थैर्य आया । दूसरा भूषण प्रभावना है । आजकल तो आप बताशे, शक्कर, बादाम, लड्डू या श्रीफल बाँटने को ही प्रभावना समझते हैं। पर, प्रभावना का अर्थ चहुत विशाल है। जिनसे धर्म का प्रभाव बढ़े, उन सब कार्यों को प्रभावना कहते है । उसमें धार्मिक महोत्सव, रथयात्रा, आदि आते हैं। अच्छा साहित्य तैयार करके उसका प्रसार-प्रचार करना भी प्रभावना के अन्तर्गत
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy