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सम्यक्त्व
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महान ग्रन्थ लिखे थे और भड़ौच में बौद्धाचार्य के साथ वाद करके उसे पराजित किया था ।
जो महात्मा अष्टाग निमित्त तथा ज्योतिषशास्त्र के पारगामी होकर शासन की प्रभावना करें, वह नैमित्तिक प्रभावक है --जैसे कि श्री भद्रचाहुस्वामी ।
श्री भद्रबाहुस्वामी का वराहमिहिर नामक एक भाई था । उसने नैनदीक्षा ली थी, पर कारणवशात् छोड़ दी और ज्योतिषशास्त्र द्वारा अपनी महत्ता बताकर जैन साधुओं की निन्दा करने लगा । एक बार उसने राजा के पुत्र की कुडली बनायी और उसमें लिखा कि- "पुत्र सौ वर्ष का होगा ।" इससे राजा को बड़ा हर्ष हुआ और वह वराहमिहिर का बहुमान करने लगा । इस मौके का लाभ लेकर वराहमिहिर ने कहा"महाराज ! आपके यहाँ पुत्रजन्म होने पर सब बधाई देने आये पर जैनो के आचार्य भद्रबाहु नहीं आये। इसके कारण को तो जानें !”
राजा ने मालूम करने के लिए आदमी भेजा, तब श्री भद्रबाहु स्वामी ने कहा - "फिजूल दो बार आने-जाने की आवश्यकता क्या है ? यह पुत्र तो सातवें दिन बिल्ली से मरण पानेवाला है । "
आदमी ने यह बात राजा से कही। इस पर राजा ने नगर की तमाम बिल्लियों को पकड़वाकर दूर करा दिया और पुत्र की रक्षा के लिए सख्त पहरा बिठा दिया ।
पुत्र को दूध पिला रही
"
सातवें दिन नत्र कि धाय दरवाजे में बैठी हुई थी, इतने में अकस्मात लकड़ी का खभा पुत्र के मस्तक पर गिरा और वह मर गया ! इससे बराहमिहिर बड़ा शर्मिन्दा हुआ और अपना मुँह छिपाने लगा | उस समय श्री भद्रबाहु स्वामी राजा के पास गये और उनने राजा को ससार का स्वरूप समझाकर आश्वासन दिया । राजा ने उनके ज्योतिषविषयक अगाध ज्ञान की प्रशंसा की और साथ ही यह भी पूछा - " बिल्ली से मरण होगा, यह बात सच्ची क्यो नहीं निकली ?" तत्र श्री भद्रबाहु स्वामी