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आत्मा देह आदि से भिन्न है
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परन्तु, वैज्ञानिकों का यह आन्तरमन जैन शास्त्रकारो का बताया हुआ भावमन है, उसके अतिरिक्त और दूसरी कोई चीज नहीं है ।
इस तरह आत्मा देह, इद्रियों, प्राण तथा मन से भिन्न वस्तु वेदान्त आदि अन्य दर्शनों ने भी उसको इसी रूप में स्वीकार किया है । जब तक ढेह, इन्द्रियों, आदि को आत्मा मानने का अभ्यास हटेगा नहीं, तब तक आध्यत्मिक प्रगति सम्भव नहीं है ।