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________________ ६०६ आत्मतत्व-विचार न खाना । (२) किसी पर शस्त्र का प्रहार करना हो तो सात कदम पीछे हटकर करना । (३) राजा की रानी के साथ सग नहीं करना। और (४) कौवे का मास नहीं खाना । बकचूल को लगा कि, इन नियमों के पालन करने में कोई खास कष्ट नहीं होनेवाला है । अतः, उसने ये नियम ले लिये और आचार्य अपने रास्ते चले गये। एक बार बकचूल बहुत से चोरों के साथ किसी गाँव पर डाका डालने गया । वहाँ से लौटते समय वह अटवी में भूल गया और वह और उसके साथी भूख से व्याकुल होने लगे। उसके साथी भोजन की खोज में निकले । उन्होंने एक वृक्ष पर सुन्दर फल देखे और लाकर बंकचूल के सामने रख दिये । बकचूल ने उस फल का नाम पूछा । पर, साथी नाम से अनजान थे। चंकचूल ने कहा-"मैं यह फल नहीं खा सकता; क्योंकि अजाना 'फल न खाने का मैंने नियम लिया है।" लेकिन, उसके साथियों ने वे फल खा लिये और थोड़ी देर में मृत्यु को प्राप्त हुए; कारण कि वे किंपाक-वृक्ष के फल थे । वकचूल सोचने लगा-"अहो! एक जरा-से नियम ने मेरी जान बचायी ।' फिर, वह किसी प्रकार अटवी से बाहर निकल गया और अपने स्थान पर पहुंच गया। एक बार जब वह बाहर गया हुआ था, तब कुछ नाटकिया (भवाइया) लोग उसकी पल्ली में आये । उन्होंने खेल शुरू करने से पहले पल्लीपति को आमत्रण देना उचित मानकर बंकचूल को बुलाने उसके घर आये। उस समय बकचूल की बहन ने देखा कि, "ये लोग तो हमारे शत्रु राजा के गाँव से आये हैं। इन्हे बंकचूल की गैरहाजिरी का पता लग जायेगा, तो ये अपने राजा को उसकी खबर दे देंगे और वह एकाएक चढ़ाई करके राजा पल्ली को नष्ट कर डालेगा । इसलिए, इन्हें बकचूल की गैरहाजिरी की खबर नहीं पड़ने देनी चाहिए।" वह बोली-"तुम लोग खेल शुरू करो । बंकचूल अभी आता है।"
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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