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________________ ६०२ आत्मतत्व-विचार श्री गौतम ने कहा - "ससार के विविध विषयो में दौड़ता हुआ मन ही वह घोड़ा है । " इससे यह भलीभाँति समझा जा सकता है कि, इन्द्रिय और मन को जीतने का कार्य कितना महत्त्वपूर्ण है। श्री आनन्दधनजी ने सतरहवें तीर्थंकर श्री कुथुनाथ भगवान् का स्तवन करते हुए कहा है- " कुथुजिन ! मन कैसे भी बाज नहीं रहता !" इन शब्दो से मन की अवस्था का पता लगता है, वह अच्छी तरह समझ लेने योग्य है । इस प्रकार धर्म के विशेष प्रकार भी सम्भव हैं, परन्तु वे सब एक या दूसरे प्रकार से इन प्रकारों के अन्तर्गत आ जाते हैं; इसलिए उनका उल्लेख हम यहाँ नहीं करते । धर्म के विविध प्रकारों को देखकर उलझन में नहीं पड़ना चाहिए महापुरुषों ने मुमुक्षुओं के मार्गदर्शन के लिए इन कल्याणकारी प्रकारो का प्ररूपण किया है । महापुरुप जीव की योग्यतानुसार प्रायः विचित्र साधनों का भी उपदेश करते हैं, यह लक्ष्य में रखना चाहिए । हमे लगेगा कि, यह क्या कहा ! पर, इस तरह नीव का कल्याण होता है। एक-दो दृष्टान्तों से यह बात स्पष्ट हो जायेगी । कुंभार की टाल देखने का नियम एक धर्मिष्ठ सेठ था । स्वच्छंद था | धर्म क्या है न उपाश्रय ! माता-पिता के एक बार उस गॉव में सुनने के लिए बहुत से लोग उसके एक पुत्र था । वह बड़ा उद्धत् और यह वह जानता ही नहीं था-न मंदिर जाता हितकर उपदेशों पर भी ध्यान नहीं देता था । कोई साधु-महात्मा पधारे। उनका उपदेश एकत्र हुए । उसमे वह सेठ भी अपने पुत्रको लेकर गया । उपदेश के अन्त में सेठ ने साधु-महात्मा से विनती की
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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