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________________ धर्म का आराधन ५६७ से आगे न बढ़ सके । दूसरे दिन से उन्होंने उम घर में कथा कहने से हाथ जोड़ दिये। जिसने सारी जिन्दगी घर बार और व्यवहार में ही गुनारी हो उनकी स्थिति प्रायः ऐसी होती है-'सूरदास की काली कमरिया चढे न दूजा रग । जिन्हें बचपन से ही धर्म का रंग लगा हो तो आगे चलकर और वृद्धि पा सकता है। पर जिन्होंने धर्म की ओर कभी दृष्टिपात भी न किया हो, वह बुढ़ापे में क्या धर्म करेगा? दोयम, धर्माराधन करने में कुछ उत्साह और जोश भी चाहिए, लेकिन बुढापे में उसका प्रायः अभाव होता है; इसलिए समुचित धर्म-पालन नहीं हो पाता। इसलिए, जब शरीर स्वस्थ और इन्द्रियाँ सक्रिय हैं, तब धर्माराधन करने में प्रमाद नहीं करना चाहिए। धर्माराधन के लिए चार अयोग्य पुरुष धर्म भी यह देखता है कि वह किसके साथ दोस्ती करे। वह चार प्रकार के लोगों से दोस्ती नहीं करता : एक तो दुष्ट यानी दया-रहित के साथ; दूसरे, मूढ यानी अविवेकी के साथ, तीसरे, कदाग्रही यानी जो अपनी खोटी मान्यता को भी न छोड़ता हो, और चौथे, पक्षपाती यानी अन्यायी के साथ ! यह बात दृष्टान्त से ज्यादा स्पष्ट हो जायगी। दुष्टता पर लुब्धक का दृष्टान्त नरपति-नामक एक राजा था। उसके सेवको में लुब्धक-नामक सेवक बड़ा दुष्ट था। वह किसी को भलाई नहीं देख सकता था । किसी ने धन कमाया हो या सुन्दर मकान बनाया हो, तो वह किसी-न-किसी अपराध का दोषी बनाकर उसे दड दिला लेता तभी उसका ईर्ष्यालु हृदय शाति पाता। सगे-सम्बन्धियों और मित्रो ने लुब्धक को यह टेव छोड़ देने की
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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