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________________ ve श्रात्मतत्व-विचार ने खीर की सामग्री इकट्ठी की थी और ब्राह्मणी ने खीर बनायी थी । और, कुछ नहीं तो खीर ही ठीक है; यह सोचकर चोर ने खीर का बर तन उठाया । यह देखकर ब्राह्मण को बहुत बुरा लगा । अपने लड़के टुकुर-टुकुर देखते रह जायें और एक अधम उन्हें वचित कर जाये, यह विचार उसे असह्य हो उठा। वह चोर के मुकाबले पर खड़ा हो गया और गुत्थमगुत्थ होने लगी । इतने मे दृढ़प्रहारी वहाँ आ पहुँचा । उसने अपनी तलवार खींची और एक ही वार में ब्राह्मण का सर धड़ से अलग कर दिया । पति की एकाएक निर्मम हत्या होते देखकर, ब्राह्मणी विचलित हो उठी और लड़के थरथर कॉपने लगे । पास ही ब्राह्मण की गाय बँधी हुई थी । ब्राह्मण उसके प्रति अत्यन्त ममता रखता था । वह उसका शिरच्छेद देखकर फुनफुना उठी और बन्धन तोड़कर दृढ़प्रहारी का सामना करने लगी । ( जानवरों मे भी मालिक के प्रति कैसी वफादारी होती है यह देखिये । ) परन्तु, सामने यम सरीखा दृढप्रहारी खड़ा था। उसने गाय को आता देखा तो तलवार से उसका भी सर धड़ से अलग कर दिया । प्यारे पति और प्रिय गाय की हत्या देखकर, ब्राह्मणी भड़क उठी और वह गालियाँ देती हुई दृढ़प्रहारी को मारने दौड़ी। भड़की हुई हालत में आदमी आगे-पीछे का विचार नहीं कर सकता । हिरनी बाघ का सामना करे तो नतीजा क्या आयेगा ? दृढप्रहारी ने उसके पेट में तलवार घुसेड़ दो। वह जमीन पर जा पड़ी । ब्राह्मणो गर्भवती थी। उसके गर्भ का लोचा बाहर निकल आया । यह दृश्य देखकर दृढप्रहारी का हृदय हिल उठा । वह सोचने लगा -- 'यह मैंने क्या किया ? एक साथ चार हत्याएँ ! और वह भी ब्राह्मण, गाय, स्त्री और बालक की !! मैंने सचमुच बड़ा पाप किया। मुझ जैसा पापी, अधम, दुष्ट हत्यारा और कौन होगा ? मैंने दुष्टता की हद कर दी ।'
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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