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अात्मा देह अदि से भिन्न है
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और वह गागिला की कोख से अपने ही वीर्य से उत्पन्न हुआ। देखो ससार की घटना । एक समय जो पिता हो वह पुत्र होता है और जो पुत्र हो वह पिता होता है ! एक समय जो माता हो वह पत्नी होती है और जो पत्नी हो वह माता होती है।
महेश्वरदत्त ने वार को मार डाल, पर गागिला को अधिक ताड़ना नहीं दी। कारण कि वैसा करने से अपनी ही फजीहत होती । नीतिकारो ने कहा कि 'आयुष्य, धन, घर का छिद्र, यत्र, दवा, कामक्रीडा, दिया हुआ टान, मिला हुआ सन्मान और घटित अपमान गुप्त रग्बना चाहिए।'
दिन गुजरने पर गागिला ने एक सुन्दर मुखवाले पुत्र को जन्म दिया और सारा घर आनन्द मे उमड़ पडा । पुत्र-जन्म किम माता-पिता को आनन्द नहीं देता?
अत्र श्राद्ध के दिन आने पर महेश्वरदत्त को पिता की बात याद आयी और उसने बाजार में जाकर पाडे की तलाश की पर, उचित मूल्य मे अच्छा पाडा मिला नहीं, इमलिए उसने घर के पाडे का बलिदान देने का निर्णय किया । इस प्रकार पाडे का बलिदान दे दिया गया और उसका मास पकाकर सगे सम्बन्धियों को खिलाने की तैयारी की । वहाँ वह कुतिया घर में आ गयी और पडे हुए जूटे बरतनो को चाटने लगी। इसमे महेश्वरदत्त को क्रोध आ गया और उसने पास पड़ी हुई लकड़ी फेक कर मारी। उससे कुतिया की कमर टूट गयी और वह चीखती-चिल्लाती बाहर चली गयी । ___ मगे-सम्बन्धियों के आने में कुछ देर थी, इसलिए महेश्वरदत्त अपने बालपुत्र को लेकर खिडकी के पास खडा था और उसे बारबार प्यार से चूम रहा था। इतने में उधर से कोई जानी महात्मा निकले । यह दृश्य देखकर वह सिर हिलाने लगे। यह महेश्वरदत्त ने देख लिया, इसलिए उसने वन्दन करके पूछा- "हे महाराज | यहाँ ऐसी क्या बात हो गयी कि जिससे आपको सिर हिलाना पड़ा।"