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________________ धर्म की आवश्यकता ५२३ --'करटी' से तात्पर्य है कुनर अथवा हाथी ! उसे टतशूल हो, तो वह उसे शोभा देता है। उसके विना वह शोभता नहीं है। -'हय' से तात्पर्य है अश्व अथवा घोड़ा। उसकी चाल में झड़प हो तो उसे गोभेगा । वह रुक-रुक कर चले या मॉड-माँड कर चले तो उसे वह बात शोभती नहीं है । आन तो बड़े-बड़े नगरों मे घोड़ों की दौड पर बानी लगायी जाती है कि, कौन घोड़ा आगे बढता है ? झड़पवाला कि, बिना झड़प का ? 'विन'-'प्लेस' आदि घोडे की झड़प पर निर्भर है।। -'शर्वरी' अर्थात् रात्रि! यदि चन्द्रमा हो तभी वह गोमती है ।। चन्द्रमा उगा न हो अथवा अस्त हो गया हो, तो रात्रि भयकर हो जाती है। रसोत्सव पूर्णिमा को होता है, अमावस्या को नहीं।। -'कुसुम' अर्थात् फूल ! यदि सुगन्ध हो तो फिर फूल की शोभा है । मोगरा आदि सुगन्धित फूल सब पसंद करते हैं। बिना' सुगन्धिवाले फूल को कोई पसन्द नहीं करता । --'सर' अर्थात् सरोवर ! पानी हो तभी उसकी शोभा है । उसमें पानी भरा हो, कमल खिले हों, अनेक प्रकार के पक्षी वहाँ चहकते हो और मनुष्य जहाँ नौका पर जलक्रीडा कर सके वहीं उसकी शोभा है। अन्यथा सब व्यर्थ! पानी के अभाव में सरोवर की सारी शोभा समाप्त हो जाती है । उसमें तब न कमल होगा, उसके तट पर न पक्षी होगे और न उसमे नौका होगी। -~'तरु' अर्थात् वृक्ष । वह तभी शोभता है, जब उसमे छाया हो। छाया न हो तो उसकी क्या शोभा ? वट, आम आदि अपनी छाया मे ही गोभायमान हैं । ताड़ के छाया हीन वृक्ष की क्या शोभा ? ___-'रूप' ! यदि लावण्य हो तो उसकी शोभा ! सफेद चमड़ी तो जगत् में अनेक की है । पर, सब सुन्दर नहीं कहे जाते । -'सुत' अर्थात् पुत्र । यदि गुणवाला हो तो ही पुत्र की शोभा !
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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