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________________ ५१८ अात्मतत्व-विचार पीड़ित है और तुम यहाँ पारणा करने बैठ गये। तुम्हे अपनी प्रतिज्ञा का भी ध्यान है ?" ये शब्द सुनते ही नटिपेण मुनि ने परणा स्थगित कर दी और शुद्ध पानी लाकर वे नगर के बाहर मुनि वाली जगह पर आये। उन्हें देखते ही वह बूढा साधु तड़क कर बोला-"अरे अधम ! मैं यहाँ ऐसी अवस्था में पड़ा हूँ और तू झटपट पारणा करने बैठ गया। तेरी वैयावृत्त की प्रतिज्ञा को धिक्कार है !" आप सेवामडलों की स्थापना करते है और सेवा करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। पर अगर कोई टो शब्द कह दे तो क्तिने गर्म हो जाते है'तुम्हारे बाप के नौकर नहीं है। एक तो मुफ्त काम करते हैं और ऊपर से ऐसे गन सुनाते हो । अब हमे इस मडल में नहीं रहना है । हम अभी स्तीफा देते हैं।' ऐसा कहकर आप त्यागपत्र दे देते हैं; पर नंटिपेण मुनि आक्रोशपूर्ण शब्द सुनकर अपने सेवाव्रत को त्याग टेनेवाले नहीं थे। उन्होंने क्षमा, नम्रता, सरलता, निर्लोभ, शौच, सन्तोष, दया आदि गुण जीवन में अच्छी तरह उतारे थे; इसलिए शाति से बोले - "हे मुनिवर | आप मेरे अपराध को क्षमा करें । अत्र मैं आपको थोड़ी ही देर में तैयार कर दूंगा । मैं अपने साथ शुद्ध पानी लेता आया हूँ।" फिर उस मुनि को पानी पिलाया और उसके कपड़े, शरीर आदि साफ करके बैठने के लिए पूछा । वह मुनि फिर भड़क कर बोला- "अरे मर्ख । तू देखता नहीं कि, मैं कितना अशक्त हूँ ? इस हालत में बैठ कैसे सकता हूँ १७ नटिपेण मुनि ने ये शब्द भी शाति से सुन लिये और बोले-"मैं आपको अभी बिठाये देता हूँ ” उमे धीमे से बिठाया और विनयपूर्वक कहा--"हे मुनिवर | अगर आपकी इच्छा हो तो मैं आपको नगर में ले चलें । वहाँ आपको अधिक साता रहेगी।"
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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