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________________ बत्तीसवाँ व्याख्यान गुणस्थान [ ३ ] महानुभावो ! है हमने अब तक गुणस्थानों का जो वर्णन किया, उससे आप समझ गये होगे कि, जो आत्मा सम्यक्त्व से विभूषित होकर विरति के पन्थ पर विचरती है; इन्द्रियों का दमन करती और सतत जागृत रहती है, वह ही आत्मविकास में आगे बढकर अल्प ससारी वन सकती है, जबकि मिथ्यात्वी, मूढ, अज्ञानी, विषय-सुख में ही आनन्द माननेवाले तथा कषाय का निरन्तर सेवन करनेवाले भारी कर्मबन्धन करके अपना ससार बढ़ा लेते हैं और चौरासी के चक्कर में फॅसे रहते हैं । आपको अल्पसंसारी होना हो तो गुणस्थानो पर आरोहण करना ही चाहिए। आपने श्रावक - कुल में जन्म लिया है; इसलिए चौथे-पाँचवें गुणस्थान में हैं, ऐसा नहीं समझ लेना । आत्मा में उस प्रकार के गुण प्रकर्टे तभी चौथे-पाँचवें की प्राप्ति हो सकती है। फिर भी यह आवश्यक है कि, दूसरों की अपेक्षा आपको गुगस्थानों पर आरोहण करने की अधिक सुविधा है ! जिन भव्य तीर्थों, आलीशान मदिरों और त्यागी गुरुओं का आपको योग है, वह दूसरों को प्राप्त नहीं है । अत्र आपको यह देखना चाहिए कि, आप इस सुविधा का कितना लाभ लेते हैं । सर्वज्ञ भगवत ने तो स्पष्ट कहा है कि, जो उठता नहीं है, काम मं लगता नहीं है, तथा मन-वचन-काय के बल का पूरा उपयोग नहीं करता, 1
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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