SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५८ आत्मतत्व-विचार निमित्त बनता है । श्रेणिक राजा को सम्यक्त्व की प्राति किस तरह हुई यह सुनकर आपको इसकी प्रतीति होगी। श्रेणिकराजा को सम्यक्त्व की प्राप्ति राजगृही-नगरी के बाहर मंडितकुक्षि नामक एक मनोहर उद्यान था। उसमें विविध जाति के वृक्ष उगे हुए थे और उन पर मोर-चकोर, शुकसारिका, काक-कोयल, आदि अनेक जाति के पक्षी निवास करते थे। उस उद्यान में अनेक प्रकार के फूल खिले हुए थे, सुन्दर लता मडप दृष्टिगोचर होते थे और नाना जलाशयो में हंस, बतख, बगुले आदि जलचर पक्षी निरन्तर क्रीड़ा करते थे। उत उद्यान में साधु-सन्यासी उतरते थे और श्रीमंत तथा सैलानी भी सैर करने आते थे । पर्व के दिनों मे तो उस उद्यान में मेला ही लग जाता था। ___मगधराज श्रेणिक को वह उद्यान बहुत प्रिय था, इसलिए वह बार बार वहाँ आते और उसके रमणीय वातावरण में अपना दिल बहलाते । आज वैसा ही एक प्रसग था, जब वे अपने साथ के सेवकों को दूर बिठा कर स्वय अकेले उद्यान मे विहार कर रहे थे । वे वृक्षों, लताओ और पुष्यों का निरीक्षण कर रहे थे तो वहाँ वृक्ष की जड़ के पास कुछ दूर बैठे हुए एक नवयुवक मुनि की ओर उनका ध्यान गया। - अग पर एक ही वस्त्र था। सुखासन से स्थिर बैठे हुए थे । नयन मुंदे हुए थे और मन पूरी तरह ध्यान में विमग्न था। उनका देह गौरवण था, मुख पर तेज व्याप्त था। सौम्य और सजनता उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। मुनिवर के इस व्यक्तित्व ने मगधराज पर बड़ी गहरी छाप
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy