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________________ आठ करण ४४३ ! प्रगति का मार्ग है । लेकिन, हमारी हालत अजीब है - हम कमाई को हानि और हानि को कमाई कहते हैं कैसे ? सो समझाते है । आप धर्म के काम में पैसा खर्च करते है, उसमे आपको सचमुच कमाई है; फिर भी आप कहते हैं कि इतना खर्च हो गया, कम हो गया । उसी तरह आपको पैसा मिलता है तो आप उसे कमाई कहते हैं, पर पुण्य उदय में आया, खर्च हुआ, तब आपको वह पैसा मिला; यानी पुण्य का पुज इतना कम हुआ, आपको घाटा हुआ । समझ सुधर जाये तो आगे बढ़ना मुश्किल नहीं है। सत्सगति रखिये, सद्विचारों का सेवन करिये और सदाचार मे स्थिर रहिए । इससे कर्म का बल अपने आप कम हो जायेगा और आपकी शक्ति का विकास होगा । विशेष अवसर पर कहा जायेगा ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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