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कर्मबंध और उसके कारणों पर विचार
४२६ आयुष्य बाँधता है। यहाँ बता दूं कि, गभीरता गुण है; पर कपट अवगुण है।
जिस पर किसी के उपदेश का असर न पड़े, वह शठ या धृष्ट है । धृष्टता मे तिर्यंच का आयुष्यकर्म बंधता है। जो दिल में ऑटी रखे और समय आने पर दूसरे को गुप्त बात प्रकट कर दे, वह भी विशेषतः तियेच का आयुष्य कर्म बॉधता है। इसीलिए शास्त्रकारो ने कहा है कि, व्यापारी प्रायः तिर्यंच का आयुष्य बाँधते हैं।" यहाँ 'प्रायः' शब्द इसलिए है कि, जो धर्म करता हो और सुपात्रदान करता हो, वह व्यापारी सद्गति में जाता है।
जिसके कषाय मद हों, बहुत टिकाऊ या बहुत तीव्र न हो, जो दान की स्वाभाविक रुचिवाला हो, नो कृपण और कपटी न हो, जो उदारहृदय हो (धर्म स्थान में खर्चने वाला उदार है, दुनिया के कामों में खर्चनेवाला उड़ाऊ है) और मध्यम गुणोवाला हो, वह मनुष्य का आयुष्य बांधता है। ऐसे गुणवान जीव कम होते हैं, इसलिए मनुष्य का आयुष्य कम जीव बॉधते है।
तिर्यंच, मनुष्य और देवगति मे जानेवाले जीव असख्यात होते हैं, परन्तु महर्द्धिक देव बननेवाले, ऊँची गति मे जानेवाले जीव कम होते हैं । देव भी दो प्रकार के होते है-अच्छे और बुरे । अच्छे देव जहाँ तक हो सके, किसी का बुरा नहीं करते, क्योंकि वे शात और सौम्य होते है । पर, बुरे जीव चाहे जिसका बुरा कर सकते हैं, कारण कि वे आसुरी प्रकृति के होते है।
चौथे गुणस्थान में अर्थात् सम्यग्दर्शन मे वर्तन करता हुआ जीव आयुष्य बॉधता है तो देवगति का वाँधता है। आयुष्य जीवन में एक बार बंधता है। वह कब बँधेगा, इसका कोई निश्चित समय नहीं है। हमे उसकी सूचना भी नहीं होती।। हम परमात्मा के वचनों में श्रद्धा रखें,