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कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार
४१३ कषाययुक्त अध्यवसायो के कारण स्थिति और रस का बध होता है और योग के कारण प्रदेश और प्रकृति बन्ध होता है। कपाय निकल जाये तो स्थिति और रस का बन्ध निकल जाये। यद्यपि शुद्ध अध्यवसाय
मे शुद्ध रस पड़ता है, परन्तु स्थिति तो कपाय बिना पड़ती ही नहीं । ___ कपायों का असर विचारो पर पड़ता है और उसके कारण आत्मा धमा
चौकड़ी करती है। कषाय का असर जितना कम हो, आत्मा की मलिनता उतनी ही कम होती है। __योग को रोक सके तो कर्म का बध हो ही नहीं, लेकिन यह शक्य नहीं है । कषाय को बन्द किये बिना योगनिरोध नहीं हो सकता।
सातावेदनीय का बन्ध सुन्दर है; कारण कि वह खूब आनन्द देता है । उसका बन्ध तो केवलज्ञानी भी समय-समय पर करते है और उसका फल भोगते है । योग भले ही चालू रहे, लेकिन अगर आपकी कषाये कम हो जाये, तो अशुभ प्रवृत्ति कम हो जाये और शुभ प्रवृत्ति में वृद्धि हो जाये । यह याद रहे कि, प्रवृत्ति चाहे जैसी शुभ हो, पर कषाय के कारण अशुभ का बन्ध पड़ता है । इसलिए कषायो को जितना कम करेंगे, अशुभ-बन्ध उतना ही कम होगा। __कपायें जितनी कम कर दी जाती हैं, चरित्र उतना ही निर्मल हो जाता है। जब कषाये बिलकुल नष्ट हो जाती है, तो आत्मा वीतराग भगवान् बन जाता है।
योग योग से तात्पर्य है-कम्पन | यह आत्मा को एक प्रकार की प्रवृत्ति है जो सदा चलती रहती है । जब तक योग है तब तक कर्मबध है । जब योग चन्द हो तो कर्मबन्ध बन्द हो । जब कर्मबध बन्द हो जायगा, तब दुःख की अनुभूति भी समाप्त हो जायगी।