________________
૦
श्रात्मतत्व-विचार
आप स्वच्छ, सुन्दर तथा कीमती कपडे पहनकर किसी उत्सव मे शामिल होने जा रहे हों और कोई उन पर कीचड या जूठन डाल दे तो आप कितना गुस्सा करते हे । पच्चीस-पचास या सौ-दो सौ के कपड़ों के लिए आप इतनी फिक्र करते हैं, तो आत्मा के लिए आपको कितनी फिक्र रखनी चाहिए, इसका अनुमान आप सहन कर सकते हैं।
आपको आत्मा की सच्ची फिक्र हो, सच्चा आत्मप्रेम हो तो आप क्रोध का काला मुँह कर दें । उमे क्षमा द्वारा नष्ट कर दै । मान को मृदुता से विगलित कर दें, माया को सरलता से सीधो कर दें और लोभ को सन्तोप - जल से धो डालें ।
जहाँ लड़ना चाहिए, वहाँ आप लड़ते नहीं हैं और जहाँ लड़ना नहीं चाहिये, वहाँ आप लड़ते हैं ! कपायो के साथ भिड़कर उन्हें नष्ट कर देने में ही सच्ची बहादुरी है ।
जैन-धर्म क्षत्रियों का धर्म है । वह आपको लड़ने का आदेश देता है | यह लडाई धन, दौलत या जमीन का टुकड़ा ले जाने वाले के साथ या गाली-गलौज करनेवाले के साथ नहीं लड़नी, क्योंकि वे तो दया के पात्र हैं। लड़ाई तो आंतर- शत्रुओं के साथ लड़नी है । और, वह लड़ाई जमकर लड़नी है । उन अन्दरूनी दुश्मनो का हमला चाहे जितना भयकर हो, फिर भी आपको पीछे हटना नहीं है। छाती पर प्रहार झेलने हैं और विजय प्राप्त करनी है। जो उन दुश्मनों के साथ लड़कर विजय प्राप्त करने की भावना नहीं रखता, वह सच्चा जैन नहीं है ।
और गति ? शांति तो घमासान युद्ध के बाद ही आती है । कपाय रूपी शत्रुओं को जीत लेंगे तो फिर आपको मनानेवाला कोई नहीं रहेगा । तत्र शांति ही याति रहेगी । बढ़िया मकान में रहने से, अप-टू-डेट फीचर इस्तेमाल करने से, सुन्दर वस्त्राभूषण धारण करने