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________________ पच्चीसवाँ व्याख्यान कर्म की शुभाशुभता महानुभावो! यह लोक, विश्व, जगत या दुनियाँ ६ द्रव्यो का समूह है। इनमें कोई द्रव्य बदलकर दूसरा द्रव्य नहीं हो सकता । अगर एक द्रव्य बदलकर दूसरा द्रव्य हो जाये, तो ६ के पाँच हो जायें, पॉच के चार, चार के तीन, तीन के दो, और दो का एक हो जाये ! इस तरह तो जीव और अनीव की अर्थात् चेतन और जड़ की पृथकता भी न रहेगी । लेकिन, द्रव्य एक दूसरे में परिणत नहीं हो जाते, ६ के ६ ही रहते हैं ! आत्मा पर कर्म का प्रभाव पड़ता है आत्मा किसी भी स्थिति-सयोग-मै पुद्गल का रूप धारण नहीं करता और पुद्गल किसी भी स्थिति-सयोग में आत्मा का रूप धारण नहीं करता, पर पुद्गलरूप कार्मण वर्गणा का, कर्म का, प्रभाव आत्मा के स्वभाव पर होता है। उसीसे इस लोक में आत्मा की भिन्न-भिन्न स्थितियाँअवस्थाएँ ~भूमिकाएँ--संभव होती है। घोड़ा और गधा एक साथ रहते हों, तो भी घोड़ा गधा नहीं हो जाता या गधा घोड़ा नहीं हो जाता, लेकिन स्वभाव का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है । एक देहाती कहावत है-"घौलिया के साथ कालिया को चाँधो तो वान तो न आयेगी पर शान अवश्य आ जायेगी।" कहने का तात्पर्य यह ही अच्छे गुणवाले श्वेत बैलों के साथ दुर्गुणी काले बैल को रखें तो श्वेत बैल का रंग बदल कर काला तो नहीं हो जायेगा. पर उसमें काले बैल के दुर्गुण अवश्य आ जायेंगे ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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