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अत्मतत्व-विचार
___ इस दुनिया में धमाल मचाने वाली, लडाई-झगडा कराने वाली कपायें है। हर लडाई-झगड़े में मोहनीय-कर्म का ही कोई-न-कोई रूप कारण होता है-कहीं क्रोध, कहीं मान, कहीं माया, कहीं लोभ!
नरक में गये हुए आत्मा को परमाधामी मारता है, काटता है, उसके गरीर के टुकड़े करता है और उसे नाना प्रकार के कष्ट देता है। इस तरह परमाधामी एक आत्मा को असंख्यात वर्ष तक सता सकता है, उससे ज्यादा नहीं । लेकिन, मोहनीय कर्मजन्य कपाये इस परमाधामी से भी बुरी हैं। वे आत्मा को अनादि काल से अमात करती आयी है, सताती आयी हैं, फिर भी हमें परमाधामी का जितना भय है, उतना कपायो का नहीं है । इसके कारण पर भाति से विचार करें तो कापायो की बुराई समझ में आ सकती है और कषायो को घटाने की बुद्धि पैदा हो सकती है और पुरुषार्थ करने से कपायें धीरे-धीरे मद और बन्द भी हो सकती है। ____ कषायें मोहनीय-कर्म के कारण हैं; यह बात ध्यान में रखनी चाहिए । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ आकर जल्दी नहीं जाते, दीर्घ काल तक रहते हैं। उनके उदय में सम्यक्त्व नहीं होता, होता भी है तो चला जाता है, क्योकि वह कपाय उसे टिकने ही नहीं देती। अगर इस कपाय में आत्मा आयुष्य बाँधे तो नरक का ही बाध सकता है। इस कवाय के आवेग में एक अन्तर्मुहूर्त में, दो घड़ी में, एक करोड पूर्व का पुण्य नष्ट हो जाता है। (एक पूर्व-3८४ लाख ४८४ लाख वर्ष)
अनन्तानुबन्धीय कपायें सम्यक्त्व का घात करती है; अर्थात् उनके उदय में सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती । अप्रत्याख्यानीय कपायें देश विरति का घात करती है, इसलिए उनके उदय मे श्रावक-धर्म की प्राति नहीं होती । प्रत्याख्यानीय कपाये सर्व विरति का घात करती हैं, इसलिए उनके उदय में साधु-धर्म की, सबम की, प्राप्ति नहीं होती। और, संज्वलन कपायें यथाख्यात चारित्र का घात करती हैं, इसलिए उनके उदय में वीतरागता की प्राप्ति नहीं होती।