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आत्मा का अस्तित्व
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आत्मा के अस्तित्व का स्वीकार आत्मवाद या मोक्षवाद की नींव की पहली इट हैं। अतः पहले उसी की विचारणा की जाती है ।
कितने ही समझदार और पढे-लिखे लोग आत्माके अस्तित्व को नहीं मानते ।' वे कहते है — "आत्मा दिखता नहीं है, उसे माने कैसे ? दिखाइये तो मानने को तैयार है; परन्तु आत्मा कोई लोहे या लकड़ी - जैसी चीज नहीं है कि उसे हाथ में पकड़कर दिखाया जा सके। जो चीज अरूपी है, आँखो से देखी ही नहीं जा सकती, उसे देखने के लिए मेहनत करनी पडती है, भेजा कसना पड़ता है और उसके जाननेवालो का सत्सग भी करना पडता है । अगर इसके लिए तैयार हो तो आत्मा को दिखलाना, आत्मा की प्रतीति कराने का काम, किंचित मात्र कठिन नहीं है ।
इस जगत में जो चीज आँखो से दिखे उसे ही हम मानते हो, ऐसा नहीं है। जो चीज दिखती नहीं है, पर जिसका कार्य दिखता है, उसे भी हम मानते है ।
'५००० वर्ष पहले मोहन - जो दाड़ो शहर था, उसके रास्ते विगाल थे, घर सुन्दर थे और उसमें बाग-बगीचे थे', इसका प्रतिपादन किस आधार पर हुआ ? उसके खडहरो, उसके अवशेषो और उसकी कारीगरी के नमूनों से ही तो । उसे आँखो से देखनेवाला तो आज कोई मौजूद नहीं है ।
हवा को आँखो से कौन देख सकता है ? लेकिन, वृक्ष की डालियों हिलने लगें या मंदिर की व्वजा फहराने लगे तो हम कहने लगते हैं कि 'हवा चल रही है' मतलब यह कि हवा आँखो से नहीं दिखती, मगर उसके कार्य द्वारा ही हम उसे जान सकते है ।
१ पहले वैज्ञानिक लोग आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानते थे, परन्तु अव इन्स्टाइन आदि अनेक वैज्ञानिक आत्मा को, स्वतन्त्र चैतन्य को स्वीकार करते है । सभव है कि विशेष शोध-खोज होने पर शेप वैज्ञानिक भी उसके अस्तित्व को मान लें । उससे विज्ञान की वर्तमान प्रवृत्ति में भी बड़ा परिवर्तन होगा ।