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________________ आठ कर्म ३१५ यहाँ थोडे गळो में बहुत सी बाते कर दी गयी है : (१) गुरुभत्ति अर्थात् माता, पिता तथा धर्माचार्य आदि पूज्य वर्ग की सेवा-भक्ति करने वाला गातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । (२) खंति अर्थात् क्षमा को धारण करने वाला गातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । (३) करुणा अर्थात् जगत के सब प्राणियो के प्रति दया भाव रखने वाला गातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । (४) वय अर्थात् साधु या श्रावक के व्रत पालनेवाला शातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है ( पच महाव्रत साधु के व्रत है और सम्यक्त्व सहित पाँच अणुव्रत, तीन गुणत्रत और चार शिक्षात्रत ये श्रावक के व्रत है ) । (५) जोग अर्थात् संयमयोग का पालन करने वाला शातावेदनीयकर्म का उपार्जन करता है । (६) कषाय-विजय अर्थात् क्रोध, मान, माया और लोभ को वश मे रखने वाला शातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । (७) दान यानी अपनी न्यायोपार्जित वस्तु का दूसरो के हितार्थ उपयोग करने वाला शातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । (८) दृढ धम्माह यानी दृढ धर्मी भी शातावेदनीय कर्म का उपार्जन करता है । जिनका वर्तन इससे विपरीत हो, वे सब अशातावेदनीय कर्म का उपार्जन करते है । आज आप के जीवन में धमाल हाय-तोबा - अगाता बहुत मालूम देती है, इसका कारण यह है कि आप गुरुभक्ति भूले हुए हैं, क्षमावान् नहीं रहे, दयालु कम हो गये है, व्रत, सयम और कषायविजय में पिछड़ गये है, शुद्ध दान नहीं कर पाते, थोड़ा दान करते हैं फिर भी कीर्ति की आगा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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