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________________ कर्मवन्ध २७५ सिद्ध परमात्मा कमरहित होते है । इसलिए सिद्धात्मा मृत्युलोक मे आकर किसी स्त्री के पेट से जन्म ले, यह भी असम्भव है, शास्त्रकारो ने स्पष्ट कहा है कि नित्थिन्न-सव्वदुक्खा, जाई-जरा-मरण-बंध-विमुक्का । अवाबाहं सुक्खं, अगुहवंति सासयं सिद्धा ॥ -जो सर्व दुःखो को सर्वथा तर गये है तथा जन्म-जरा-मृत्यु के वधन से छूट गये है, ऐसे सिद्ध शाश्वत और अव्यायाध सुख का अनुभव करते हैं। आप रोज 'नमोत्थुगं-सूत्र' पढ़ते है। उसके पदो का बड़ा गम्भीर अर्थ है । उसे समझ लेंगे तभी उसका पाठ भावपूर्वक कर सकेंगे। उसका अर्थ सूरिपुरदर श्री हरिभद्रसूरिजी ने 'ललितविस्तरा' चैत्यवंदनवृत्ति मे समझाया है । उस वृत्ति को पढकर श्री सिद्धर्पिगणि की डगमगाती हुई अहा स्थिर हुई थी। दूसरे भी बहुत-से जीव उस वृत्ति को पढ़कर श्री जिनेश्वर देवकी श्रद्धा-भक्ति में दृढ हुए है। _ नमोत्थुण सूत्र में श्री अरिहत देवो को 'सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताण' कहा है । अर्थात् जो-जो अरिहंत देव हुए है, वे सब सिद्धिगति को प्राप्त हुए है। सिद्धिगइ आदि पदो से पूर्व 'सिवमयलमरुअमणतमक्खयमन्त्राबाहमपुणरावित्ति' गळ आये है। ये सिद्धगति के विशेषण है। 'अयर' अर्थात् वह अचल, स्थिर है। 'अरुअ' अर्थात् वह व्याधि और वेदना से रहित है। व्याधि का मूल शरीर है और वेदना का मूल अशुद्ध मन है । शरीर और मन का वहाँ अभाव है, इसलिए व्याधि और वेदना भी नहीं है । 'अणंज' यानी वह अनन्त है, अन्तरहित है। “अक्खय' यानी वह अक्षय है। 'अवाबाह' यानी वह अव्याबाव है, च्याबाधा से रहित है, वहाँ कोई कर्मजन्य पीड़ा नहीं होती । 'अपुणरावित्ति' यानी वहाँ जाने के बाद उसका वापस आना नहीं होता ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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