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कर्म की शक्ति
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एक बार वह चोरी करते पकड़ा गया। कोतवाल ने उसे राजा के सामने पेश किया | राजा ने उसे देशनिकाला की सजा टी, इसलिए उसे राजगृही छोड़ कर जाना पड़ा । वह रखडता हुआ एक चोरपल्ली मे जा पहुँचा । वहाँ वह अपनी खूबियों के कारण पल्लीपति का कृपापात्र बन गया और पल्लीपति के मरने के बाद उसके पद पर आया । अब तो चोरी, डकैती, लुटपाट और खूँरेजी हो उसका व्यवसाय हो गया ।
एक बार उसने तैयारी करके राजगृही में प्रवेश किया और धन्य सार्थवाह के घर पर डाका डाला । खूब माल हाथ लगा । चिलातीपुत्र सुपमा को भूला नहीं था । उसने उसे भी खोज निकाला और उसे हर ले गया ।
धन्य सार्थवाह ने देखा कि पुष्कल धनमाल के साथ-साथ प्यारी पुत्री का भी हरण हो गया है, इसलिए वह अपने चार पुत्रों और राज्य के कुछ सिपाहियों के साथ उसका पीछा करने लगा । बीहड़ रास्ता तय करने के चाट अटवी के नजदीक पहुॅचा ।
चिलातीपुत्र ने मोचा- "यह वन के लिए नहीं, सुपमा के कारण मेरा पीछा कर रहा है। अगर मैं इसके हाथो पड़ गया तो मेरा कल्याण नहीं । इसलिए उसने तलवार के एक ही वार से सुपमा का सर काट दिया और धड़ को वहीं छोड़कर सर लेकर भागने लगा । धन्य सार्थवाह पुत्री की निर्मम हत्या पर कल्पान्त करने लगा और आखिर वापस लौट आया ।
चिलातीपुत्र उस घोर अटवी में आगे बढ़ने लगा । पीछे का भय रहा नहीं था, थक गया था और भूख भी जोर से लगने लगी थी । इसलिए, वह खाने लायक फल-फूल की तलाश करने लगा । उसने देखा कि एक मुनिराज एक वृक्ष के नीचे खड़े हुए व्यानमग्न हैं ।
चिलातीपुत्र जानता था कि साधु-महात्मा 'धर्म' करते है और उससे मनुष्य को बड़ा लाभ होता है । इसलिए वह उस साधु के निकट जाकर