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कर्म को शक्ति
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महात्रलवान् भरत चक्रवर्ती अपने भाई बाहुबली से द्वन्द्व-युद्ध में हार गये । इसे भी कर्मप्रभाव के सिवा क्या कहे ?
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श्रीकृष्ण वासुदेव थे। वह अपूर्व ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी थे और विलक्षण शक्तिशाली थे । धातकी-खड की अपरकका नगरी से द्रौपदी को चापस लाते समय वे ६२ || योजन पटवाली गंगा नदी को भुजाओ से तैर गये । परन्तु, अन्तिम दिनो मे द्वारका में आग लगी, उनका सारा परिवार और सगे-सम्बन्धी उसमे नाग को प्राप्त हुए। माता-पिता को उस सर्वनाश से बचा लेने का उन्होंने भगीरथ प्रयत्न किया, फिर भी सफल नहीं हुए । वसुदेव और देवकी दरवाजे की शिला के गिरने से मृत्यु को प्राप्त हुए । सिर्फ वे और उनके बड़े भाई बलभद्र बचे । वहाँ से जगल में जाते हुए, बड़ी प्यास लगी । बलभद्र पानी लेने गये और इधर जराकुमार के बाण से -उनकी जान गयी । यह कर्मगति नहीं तो क्या है ?
चिलातीपुत्र का चमत्कारिक चरित्र
चिलातीपुत्र का चरित्र सुनिये । इसमें आपको कर्म का अद्भुत् चमत्कार दिखायी देगा । पुण्य, शुभ कर्म का प्रबल उदय होने पर ही मनुष्य भव मिलता है । उसमें भी विशेष पुण्यशाली का जन्म आर्यदेश मं और उच्चकुल में होता है । चिलातीपुत्र का जन्म मगध देश की राजधानी राजगृही में हुआ था, परन्तु उच्चकुल में नहीं हुआ था । वह धनदत्त सेठ -की चिलाती - नामक एक गरीब दासी के पेट से जन्मा था ।
अमीर ऐग
एक का जन्म होने पर, बारह प्रकार के बाजे बजे और मिठाइयाँ चॅट और दूसरे के जन्म समय कॉसे की थाली भी न बजे और गुड़ की कंकरी भी न बॅटे, इसे भी कर्म का चमत्कार मानना ही होगा । भोगता है, गरीब कष्ट में रहता है, इसलिए कुल-कुटुम्ब का के जीवन पर बहुत गहरा पड़ता है । इसे भी कर्म का ही गया है ।
असर मनुष्य प्रभाव माना