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कर्म की पहचान
'लक्ष्मी गोवर बोनती, भिक्षुक है धनपाल श्रमरसिंह मरता दिखा, भला मैं उनठनपाल !" यह सुनकर पिता को बड़ा आनन्द हुआ ।
यह बात तो प्रसंगवश सुनायी । लेकिन, 'कर्म'' नाम गुणसम्पन्न है । -नामानुसार ही उसका अर्थ है । कर्म क्रियानन्य है, वह आत्मा की क्रिया से उत्पन्न होता है । इसलिए उसका नाम सार्थक है ।
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कर्म काल्पनिक नहीं, वास्तविक है । वह एक प्रकार का पुद्गल है, नड़ है, और आत्मा के विरोधी तत्त्व की तरह काम करता है । इस जगत् मे प्राणियो पर जो कुछ दुःख-सुख गुजरते हैं, वे सब कर्मों के हो कारण । कर्म हमारा मित्र नहीं छात्रु है । उसका सम्बन्ध किस तरह छूटे इसी कोशिश में रहना चाहिए ।
विशेष विवेचन अवसर आने पर किया जायेगा ।
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