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प्रात्मसुख
२३६ डालते रहोगे तो यह भडकती रहेगी। उसे ठडी करने के लिए वैराग्यजल छिड़कना चाहिए । वैराग्य अभयदाता है, इसलिए सब महापुरुषो ने वैराग्य पर अत्यन्त बल दिया है ।
पुद्गल का सग छूटते ही मुक्ति मिल जाती है । मुक्ति का अर्थ हैमहासुख, परमसुख, अनन्य और अनिर्वचनीय सुख ! आत्मा के अन्दर सुख का जो रहस्यपूर्ण अनन्त भाडार छिपा हुया है, वह उस समय प्रकट हो जाता है । जैसे सूर्य के उदय होने पर उल्लू अपना मुंह छिपा लेते है, उसी प्रकार आत्मा का सच्चा सुख प्रकट हो जाने पर दुःख, कष्ट, कटिनाइयाँ, उलझनें अपना मुंह छिपा लेती है और बिलकुल नजर नहीं आतीं। लेकिन, आपको मुक्ति का या मुक्ति के सुख का कोई अनुमान नहीं, इसीलिए उसके विषय में चित्रविचित्र कल्पनायें किया करते है।
पंडित और रबारी एक बार एक पडित एक रबारी के पास आया। वह रबारी सहज आड़ा पड़ा हुआ, हुक्का पी रहा था । पडित ने उससे कहा-"भाई ! यूँ पड़ा न रह, कुछ धर्म कर ।" रखारी ने पूछा--"धर्म क्या चीज होती है ? धर्म करने से क्या होता है ?” पडित ने कहा-"धर्म माने अच्छा काम | धर्म करने से मुक्ति मिलती है ।” रबारी को मुक्ति का क्या ज्ञान ? उसने पूछा--"वहाँ हुक्का मिलेगा ?” पडित ने कहा-"वहाँ हुक्का नहीं मिलेगा पर दूसरा सुख बहुत मिलेगा।” तब रबारी बोला"भाई । वह मुक्ति मेरे काम की नहीं | मेरा तो हुक्का बिना एक घड़ी भी नहीं चलता।”
यह तो रबारी था, अशिक्षित था, इसलिए उसने ऐसा जवाब दिया। पर कितने ही पठित पंडित भी यह कहते हैं कि, "जिस मुक्ति मे खानेपीने का सुख नहीं, मौज शौक नहीं, भोगविलास नहीं, उस मुक्ति को