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________________ १८४ आत्मतत्व-विचार चिल्लाकर बोला--"अरे भाई । दूर भाग, नहीं तो यह हाथी तुझे मार डालेगा।" यह ठहा पडित ! यह एक अनजान महावत की बात को यूँ ही थोडे ही मान लेनेवाला था । उसने अपनी आदत के मुताबिक तर्क करके कहा-"ओ महावत ! यह हाथी अड कर मारेगा या अडे बगैर मारेगा ? अगर अडकर मारता है तो तृ अड़कर बैठा है, फिर भी मर क्यो नहीं गया ? और, अगर यह बिना अडे मारता है तो मैं चाहे जितनी दूर चला जाऊँ तो भी क्या होगा? इसलिए तेरा कहना फिजूल है।" यह तर्कवादी रास्ते से दूर नहीं हटा । इतने में हाथी आ पहुँचा और उसने उस तर्फवाटी को सूंड से पकडकर अपने पैर के नीचे दबाकर मार डान्या । अगर उस तर्कवादी ने अनुभवी महावत का कहना माना होता, तो उसकी ऐसी हालत कमी न होती। इसलिए अनुभवियों की बात माननी चाहिए और व्यर्थ कुतर्क नहीं करना चाहिए। जो विद्या के मद मे आकर महापुरुषो के उपदेश को झटा टहराने की कोगिय करते हैं या उनकी हँसी-मजाक उडाते है, उनका भवभ्रमण और कई गुना ज्यादा बढ़ जायेगा और उन्हे बहुत प्रकार की भयंकर यातनाएँ भोगनी पडेगी। इसलिए भूलकर ऐसों की न तो सगति करनी चाहिये न बात माननी चाहिए। मच्चा आत्मजान क्या है- यह ममुचित रीति से ममय लेना चाहिए । गान्त्रकारी ने आत्मजान म सहायक तीन प्रकार का ज्ञान कहा है-पहला विप्रतिभास, ट्सका आत्मपरिणतिमत् और तीसग तत्त्वसवेदन ।। जिसम विषय का निटेगमात्र हो पर उसके योपादेय अंगो का ज्ञान न हो, उसे विश्वप्रतिभाम ज्ञान कहते है। उदाहरणतः बालक यह जान ले कि यह जर है; यह कॉटा है, यह रत्न है, पर वह यह नहीं जानता कि जर क्या त्याच है कॉटा क्यों परिहार्य है. और रत्न क्यों ग्रहणीय है ! अथवा तोता किमी के सिखाने से 'गम-गम' बोलता है। पर, राम कोन
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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