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आत्मतत्व-विचार
"तो आपने इस गाय को क्या सोचकर खरीदा ?" वह बोला-"सब से ज्यादा हृष्ट-पुष्ट है, गले मे सुन्दर घटा है, यह सोचकर ।”
स्त्री ने तमक कर कहा -"सब पैसे पानी में गये ! यह गाय तो चॉझनी है, यह कहाँ से दूध देगी ?" ___ यह सुनकर वह भोला आदमी विचार में पड़ गया। अब क्या किया जाये १ कुछ देर बाद बोला-"अगर ऐसी ही बात है, तो हम यह गाय किसी और को बेच देंगे।" ___ स्त्री ने कहा-"पर तुम जैसा बुद्धिहीन दूसरा कौन होगा कि जो बिना परखे इस गाय को ले लेगा ? इसलिए बस यहीं तक रहने दो।"
गरज यह कि गाय उसके मत्थे पडी और सब पैसे पानी में गये !
यह एक अत्यन्त अर्थपूर्ण शास्त्रीय दृष्टान्त है, तरह-तरह के रग की गायो को तरह-तरह के वेगवाले साधु समझना । जो गुरु त्यागी-तपस्वी होते है, वे दुबले-पतले होते है । जो विशेष तपस्या नहीं कर सकते, वे मध्यम शरीर के होते है । और, जो त्याग-वैराग्य को धता बता कर मनचाहा मालमलीदा उडाते हैं, वे गरीर से हृष्टपुष्ट होते हैं। इसके अलावा ये अन्तिम प्रकार के अलमस्त गुरु बड़े पाखण्डी और चालबाज भी होते है, इसलिए बाहरी आडम्बर बहुत रखते हैं। उसे गले का सुन्दर घटा समझना । ऐसे गुरुओ के पास जाने से या उनकी शरण लेने से आत्मज्ञानरूपी दूध नहीं मिल सकता।
सद्गुरु कैसा हो ? सद्गुरु कैसा हो ? इसका जवाब कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज ने योगशास्त्र में दिया है
महाव्रतधरा धीरा, भैक्ष्यमात्रोपजीविनः ।
सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरुवो मताः ।। अर्थात् सद्गुरु वह है जो पॉच महाव्रतो को धारण करनेवाले हैं,