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आत्मा का खजाना
१४७ दिया-"मेरे घर में रहना हो तो रात को खाना पड़ेगा, नहीं तो तुम
लोग अपना रास्ता देख लो।" इस पर दोनो भाई वहाँ से चल दिये। ‘पर उस वक्त हंस को कुछ होला देखकर, पिता ने उसका हाथ पकड लिया और उसे घर में रख लिया।
केशव अपनी प्रतिमा में अचल रहा । परन्तु, ऐसा बनता रहा कि उसे दिन मे कुछ खाना न मिल्ता, इसलिए उसे कडाके पर कड़ाके होते रहे । इस तरह सातवॉ दिन हो गया तब वह आधी रात के समय भडीरव यक्ष के मंदिर के पास आ पहुंचा।
पूनम की रात थी और लोग वहाँ यक्ष की प्रार्थना करते हुए बैठे थे। उनकी ऐसी प्रतिना थी कि उस समय जो कोई अतिथि आ जाये, तो उसे जिमा कर जीमना । वे केशव को देखकर हर्पित हुए और उसे जिमाने की तैयारी करने लगे। परन्तु, केगव ने उन्हें सूचित कर दिया-"मुझे जीमना नहीं है, इसलिए कोई तैयारी न करें।"
लोग उससे अनुनय-विनय करने लगे-"भाई, ऐसा क्यो करते हो? हम सब यहाँ भूखे बैठे है। तुम जीम लो तो हम भी जीम सकेगे।" सात दिन का कड़ाका है, लोगो का बड़ा अनुरोध है, परन्तु केशव अपनी प्रतिज्ञा से चलित नहीं हुआ। वह लोगो से नम्रतापूर्वक कहने लगा-"मुझे रात में न खाने की प्रतिज्ञा है. इसलिए आप सुबह तक ठहर जायें तब मै खा लेगा।" लोग कहने लगे-'अगर तुम इस वक्त नहीं जीमोगे तो बात कल मध्यरात्रि तक टल जायेगी और तब तक तो कितने ही भूख के मारे मर भी जायेगे; इसलिए भले होकर हमारी बात मानो । तुम्हे रात मे न जीमने की प्रतिजा हो तो भी बहुतों के कल्याण की खातिर खालो।" परन्तु, ये वचन केशव को उसकी प्रतिज्ञा से विचलित न कर सके । ___अब उसी समय यक्ष प्रकट हुआ और हाथ में मुद्गर लेकर केशव के सामने आया। वह क्रोध से आगबबूला होकर भड़क कर कहने लगा-"तू