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श्रात्मतत्व-विचार
संख्या अनन्तानन्त ही रहती है- अर्थात् आत्माओ की सख्या मध्यम अनन्तानन्त है, ऐसा समझना ।
यह विश्व अनादिकाल से चल रहा है और उसमें रहने वाले जीवों का मुक्तिगमन चाल है, तो कभी यह विश्व आत्माओं से बिलकुल रहित हो जायगा या नहीं ? इसका उत्तर नीचे की गाथा देती है ।
जइआइ होई पुच्छा, जिणाण मग्गंमि उत्तरं तइया । इक्क्स्स निगोयस्स, अनंत भागो उ सिद्धिगयो ||
- 'जिन मार्ग में जब भी ऐसी पृच्छा की जाती है कि, अब तक कितने आत्मा सिद्ध हुए, तो उसका उत्तर यह मिलता है कि, अब तक एक निगोद का अनन्तवा भाग सिद्ध हुआ है ।'
अर्थात्, अनन्त में से अनन्त जाने पर भी अनन्त ही रहेगे और यह विश्व आत्माओ से कभी खाली नहीं होगा यह निश्चित है ।
ये सब बातें सूक्ष्म है, पर सद्गुरु का सग करो और उनके सहवास में आते रहो तो अज्ञान का पर्दा हटने में देर नहीं लगेगी । पारसमणि और लोहे की डिब्बी के बीच का पर्दा हटाया कि लोहे की डिब्बी सोने की बन जाती है । यह दृष्टान्त यहाँ विचारने लायक है ।
पारसमणि का दृष्टान्त
एक बाबाजी थे । उनके पास पारसमणि था । पारसमणि लोहे को छुए तो सोना हो जाता है । गॉव के नगरसेट को इसकी खबर लगी तो अपना धन्धा वन्धा छोड़ कर बाबाजी के पास दौड़ा गया और उनकी सेवा शुरू कर दी । बाबाजी को कष्ट न हो, इसलिए सेठ ने अपना रहना, खाना, सोना, बैठना, सब बाबाजी के साथ रखा ।